इंटरनेट व सोशल मीडिया युवा वर्ग पर भारी, पड़ रहा हैं छोटे बच्चों पर गलत प्रभाव, हो सकते हैं इसके भयानक परिणाम! मो तहसीन की रिपोर्ट।

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काल्पनिक तस्वीर

कल्पना कीजिए कि अगर चौबीस घंटे के लिए देश की इंटरनेट सेवाएं बाधित हो जाएं तो क्या होगा! जाहिर है हाहाकार मच जाएगा। आज का युवा वर्ग हर दो से तीन मिनट के अंदर अपने मोबाईल को चेक करता है। उसमें सोशल मीडिया पर जाकर वह लोगों के कमेंट्स और अपने द्वारा दिए गए कमेंट्स पर लोगों की राय आदि को देखता ही है।

चौबीस घंटों में से कम से कम सात से आठ घंटे तक युवाओं के द्वारा मोबाईल पर समय जाया किया जा रहा है। मोबाईल और सस्ते इंटरनेट का उपयोग अगर सकारात्मक दिशा में हो रहा होता तो बात और थी, पर साठ फीसदी से ज्यादा युवाओं के लिए यह समस्या का कारण बनता जा रहा है।इसका प्रयोग समाज में भ्रामक जानकारियों और अश्लीलता को बढ़ावा देने के लिए ही किया जा रहा है। यह कहा जाए कि युवाओं को मोबाईल और इंटरनेट की लत लग चुकी है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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आज हर युवा के हाथ में एक के बजाए दो दो स्मार्टफोन दिख जाएंगे, जबकि एक स्मार्टफोन में दो सिम लग सकती हैं! सूचना क्रांति के आने के पहले यह माना जा रहा था कि अगर इसके कदम भारत में पड़े तो देश में इस तंत्र के जरिए नए प्रयोगों, नए विचारों के आदान प्रदान में आसानी होगी और देश में फैली कुरीतियों के साथ ही साथ रोजगार के साधनों में बढ़ोत्तरी भी हो सकेगी। एक समय था जब कम ही घरों में टेलीफोन हुआ करते थे

उस दौर में नंबर डायल करने के लिए टेलीफोन पर बनी चकरी को बार बार घुमाना होता था। सीडॉट एक्सचेंज के आने के बाद फोन लोगों की पहुंच में आए और उसके बाद घरों घर टेलीफोन की घंटियां घनघनानें लगीं।

इसके बाद आया पेजर का जमाना। कम ही लोग पेजर के बारे में जानते होंगे। यह एक तरह का यंत्र था,  जिसमें एक कंट्रोल रूम के जरिए पेजर पर संदेश भेजे जाते थे। जिसके पास पेजर होता था वह संदेश पढ़कर आगे की कार्यवाही को अंजाम देता था। पेजर की आयु कम ही रही। इसी बीच मोबाईल फोन ने आ गया। मोबाईल फोन के शुरूआती दिनों में इनकमिंग और आऊटगोईंग दोनों ही के लिए भुगतान करना होता था। प्रति मिनट की दर इनकमिंग आठ रूपए सत्तर पैसे तो आऊटगोईंग की सोलह रूपए अस्सी पैसे हुआ करती थी।

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धीरे धीरे ये दरें कम हुईं। इसके बाद इनकमिंग कॉल्स भी निशुल्क हुए। इसी बीस शार्ट मैसेज सर्विस (एसएमएस) सेवा का आगाज हुआ। इस पर भी शुल्क लगता था।जैसे ही मैसेज सेबा निशुल्क हुई, लोगों ने इसका जमकर उपयोग किया। चुटकुलों, संदेशों के आदान प्रदान के लिए यह सबसे मुफीद तरीका लगा लोगों को। इसके बाद जैसे ही मोबाईल सेवाएं और उन्नत हुईं तब सोशल मीडिया पर फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम जैसी सेवाओं ने अपना कब्जा जमा लिया।

ये सारी सुविधाएं लोगों के लिए वरदान से कम नहीं थीं। विडम्बना ही कही जाएगी कि इस तरह की सुविधाओं के सदुपयोग के बजाए इसका दुरूपयोग ज्यादा होने लगा है।आज की युवा पीढ़ी इसके दुष्प्रभावों से बुरी तरह ग्रसित हो चुकी है।सोशल मीडिया पर सूचनाओं को ज्ञान वर्धक और तथ्य परख बनाए जाने की जरूरत थी, किन्तु इससे उलट इंटरनेट और मोबाईल के रास्ते पूरी तरह अश्लीलता और भ्रामकता की कीचड़ से सने ही नजर आते हैं।
एक समय था जब विद्यालयों में विद्यार्थी जेब में कंघी तक नहीं ले जा पाते थे।

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आज के समय में छोटी छोटी आयु के विद्यार्थियों के बस्तों में मोबाईल मिलना आम बात हो गई है। पालकों के साथ इमोशनल (भावनात्मक) ब्लेमेलिंग का अस्त्र चलाना बच्चों को बेहतर तरीके से आ चुका है।पाठशालाओं में क्लासेज में अध्ययन के समय ही विद्यार्थी इंटरनेट का उपयोग कर चेटिंग करते दिख जाते हैं। विद्यार्थी करें तो करें, कक्षाओं में शिक्षक भी बिना किसी डर के मोबाईल चलाते दिखते हैं। कई सूबों में ऑनलाईन हाजिरी के फरमान इस शिक्षकों को मोबाईल चलाने की अघोषित छूट भी प्रदान करते हैं।

पाठशालाओं में मोबाईल के प्रयोग के मामले में पाठशाला प्रबंधन भी लाचार ही दिखते हैं। नियमानुसार तो विद्या के मंदिर कहे जाने वाले विद्यालयों में मोबाईल का प्रयोग पूरी तरह प्रतिबंधित ही होता है, पर जमीनी हकीकत इससे उलट ही नजर आती है। आज के युग के माता पिता भी अपने बच्चों की हर गतिविधि पर नजर नहीं रख पा रहे हैं। विद्या का मंदिर वस्तुतः ज्ञान अर्जित करने के लिए होता है और यहां विद्यार्थी पढ़ाई और ज्ञान हासिल करने के लक्ष्य के साथ ही जाता है।

आज सोशल मीडिया पर क्या चल रहा है यह बात किसी से छिपी नहीं है। अगर किसी शिक्षक के द्वारा कार्यस्थल पर कार्य के समय मोबाईल का प्रयोग किया जा रहा है तो यह बात पता करना बहुत कठिन नहीं है।इसके लिए किसी भी विभाग में नियंत्रण के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, यही कारण है कि शिक्षा के क्षेत्र में परिणामों में गिरावट तो आ ही रही है, साथ ही नैतिक मूल्य भी तेजी से पतन के रास्ते पर अग्रसर हो चुके हैं। सोशल मीडिया पर तरह तरह की बातें, अनेक वीडियोज के लिंक आदि भी विद्यार्थियों का ध्यान भटकाने के लिए पर्याप्त माने जा सकते हैं।

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विद्यार्थी भी कम समय में रातों रात अमीर होने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेकर नए तरीकों को अपनाने से बाज नहीं आ रहे हैं। महज कुछ रूपयों में निश्चित दिनों की वैधता वाले इंटरनेट पेक्स जिनमें असीमित बात करने (अनलिमिटेड कॉलिंग) की सुविधा होती है के जरिए माता पिता से रीचार्ज करवाकर बच्चों के द्वारा अपना ज्यादा समय इस पर बिताया जा रहा है। इस तरह बच्चे पढ़ाई से जी चुरा रहे हैं। एक आंकलन के अनुसार हर बच्चा कम से कम तीन से चार घंटे तक मोबाईल पर ही बिता रहा है। छोटे बच्चे मोबाईल पर ऑन लाईन गेम खेलते हैं तो उनसे बड़ी आयु के बच्चे आपस में चेटिंग, सोशल मीडिया पर सर्फिंग कर अपना समय ही जाया कर रहे हैं। यह सही है कि मोबाईल पर इंटरनेट के आने से कुछ बच्चे जरूर सकारात्मक दिशा में प्रयास करते दिखते हैं, पर इस तरह के बच्चों की तादाद बहुत ही कम है।

युवाओं को कच्ची मिट्टी यूं ही नहीं कहा गया है। युवा अवस्था में अच्छे बुरे का भान नहीं होता है। इस अवस्था में जो अच्छा लगे वही नैतिक, न्यायसंगत, सर्वमान्य होता है। इस तरह की आयु के बच्चों को अस्त्र बनाकर समाज में धार्मिक विषवमन भी बहुत करीने से किया जा रहा है। ज्यादा समय तक मोबाईल पर समय बिताने से बच्चे एक ही जगह बैठे रहते हैं, जिससे वे परांपरागत खेलों, व्यायाम आदि से भी दूर होकर अपना वजन बढ़ा रहे हैं।


सरकारी और निजि कार्यालयों में भी लोग आधे से ज्यादा समय मोबाईल से ही चिपके दिख जाते हैं। इस तरह उनके द्वारा भी कार्य स्थल पर अपनी जवाबदेहियों के निर्वहन में कोताही ही बरती जा रही है। मोबाईल के ज्यादा प्रयोग से शारीरिक दुष्प्रभाव भी हो रहे हैं।चिड़चिड़ापन और अनिंद्रा की शिकायत भी इससे बढ़ी दिख रही है। इसलिए मोबाईल के सकारात्मक प्रभावों के बारे में विचार कर उसके बारे में जनजागृति फैलाने का यह सही समय है।