देहरादून से लेकर उत्तरकाशी तक भूकंप का खतरा: राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र

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देहरादून
नैशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी (एनसीएस) ने बुधवार को देहरादून के लिए चेतावनी जारी की है। एनसीएस ने कहा है कि देहरादून से लेकर टनकपुर (चंपावत) के बीच भूकंप का खतरा बढ़ गया है। यहां कभी भी भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा आ सकती है। चेतनावनी भरी यह जानकारी एनसीएस के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत ने साझा की। वह देहरादून में डिजास्टर मैनेजमेंट पर आयोजित वर्कशॉप में बोल रहे थे।

निदेशक विनीत गहलोत ने बताया कि नैशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी नई दिल्ली के एक अध्ययन में सामने आया है कि देहरादून से टनकपुर (चंपावत) के बीच करीब 250 किलोमीटर क्षेत्रफल भूमि लगातार सिकुड़ती जा रही है। भूमि के सिकुड़ने से यहां भूकंप का खतरा बढ़ता जा रहा है।

उत्तरकाशी और टिहरी में भूकंप का ज्यादा खतरा
निदेशक के अनुसार करीब 250 किलोमीटर का हिस्सा भूकंपीय ऊर्जा का लॉकिंग जोन बन गया है। लेकिन अब तक के अध्ययन में सबसे अधिक लॉकिंग जोन चंपावत, टिहरी-उत्तरकाशी क्षेत्र में धरासू बैंड व आगराखाल में पाए गए हैं।

2012 से 2015 तक सिकुड़ता दिखा देहरादून
एनसीएस ने वर्ष 2012 से 2015 के बीच देहरादून (मोहंड) से टनकपुर के बीच करीब 30 जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) लगाए गए। इसके अध्ययन पर पता चला कि यह पूरा भूभाग 18 मिलीमीटर की दर से सिकुड़ रहा है। जबकि पूर्वी क्षेत्र में यह दर महज 14 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई।

धरती के सिकुड़ने से बन रहा है ऊर्जा का भंडार

इस सिकुड़न से धरती के भीतर ऊर्जा का भंडार बन रहा है, जो कभी भी इस पूरे क्षेत्र में 7-8 रिऐक्टर स्केल के भूकंप के रूप में सामने आ सकती है।
क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में पिछले 500 सालों में कोई शक्तिशाली भूकंप नहीं आया है। एक समय ऐसा आएगा जब धरती की सिकुड़न अंतिम स्तर पर होगी और कहीं पर भी भूकंप के रूप में ऊर्जा बाहर निकल आएगी।