राहुल गांधी सौम्‍य थे मगर बेहद आक्रामक हैं तेजस्‍वी यादव, पहले भाषण से ही दिए संकेत

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Rahul Gandhi vs Tejashwi yadav
बिहार में सत्ता गंवाने के बाद भी आरजेडी नेतृत्व अपने भविष्य को लेकर आशावान है। बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के ओजस्वी भाषण ने उन्हें देश और सूबे की राजनीति में परिपक्व, ऊर्जावान नेताओं की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की हुंकार और ललकार, जो विधानसभा में देखने को मिली, में आरजेडी को अपना भविष्य का नेता नजर आ रहा है। तेजस्वी यादव जब तक सत्ता में थे तो उनके भाषणों में वो गर्मजोशी और तल्खी नजर नहीं आती थी, लेकिन सत्ता जाते ही मानो उनकी वाकपटुता निखर कर सामने आ गई हो। तेजस्वी यादव के लिए चुनौती ये है कि उन्हें अपना ये तेवर बरकरार रखना होगा। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी 20 जनवरी 2013 को जब पहली बार पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी लेकर वाइस प्रेसिंडेंट बने तो जयपुर में दिया गया उनका भाषण भी काफी चर्चा में रहा था। बतौर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस भाषण में कांग्रेस के भावी भारत की तस्वीर खींची थी।
आज जब आरजेडी के राजनीतिक वारिश के रुप में तेजस्वी यादव और उनके भाषण की चर्चा हो रही है तो जयपुर में दिया गया राहुल गांधी का भी भाषण याद आता है। लेकिन इन दोनों भाषणों में एक मूल अंतर है। राहुल गांधी ने ये भाषण तब दिया था जब कांग्रेस केन्द्र में सत्ता में थी। राहुल गांधी को भारत के लिए सपने बुनने के लिए सामने अपनी पार्टी का प्रधानमंत्री था, उनकी मां सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थी और उनके पास देश भर में फैले कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भारी भरकम फौज थी। लेकिन तेजस्वी यादव इस वक्त तुलनात्मक रुप से मुश्किल हालत में थे। एक ही दिन पहले ही डिप्टी सीएम का उनका पद छीन चुका था। लेकिन उन्होंने जितनी आक्रमकता, तार्किकता और तथ्यों के साथ नीतीश कुमार और बीजेपी पर हमला किया, उसने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी। तेजस्वी यादव की भाषण शैली में अपने पिता लालू जैसी हंसी ठिठोली नहीं है। इसमें सवाल है, चुनौती है, तर्कों का समावेश है।
तेजस्वी यादव ने जब कहा कि बीजेपी के 91 विधायक होने के बावजूद भी नीतीश कुमार ने जब उनसे सत्ता तोड़नी चाही तो उन्हें दूध से मक्खी की तरह बाहर निकालकर फेंक दिया, लेकिन इस बार आरजेडी के 81 विधायक होने के बावजूद भी नीतीश कुमार में मुझे बर्खास्त करने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि उनमें ऐसा करने का नैतिक बल नहीं था। तेजस्वी के इस बयान से नीतीश और सुशील मोदी एक दूसरे से आंख नहीं मिला सके। दोनों ही हतप्रभ थे।राहुल के विपरित तेजस्वी यादव अपने तेवर की वजह से अपने पहले ही भाषण में श्रोताओं से संवाद स्थापित करने में सफल दिखते हैं। जबकि राहुल की बातें कई बार हल्केपन में बाहर निकल जाती है। श्रोता राहुल की बातें सुनकर ताली बजाता है लेकिन उनके बातों से खुद को जोड़ नहीं पाता। राहुल श्रोता को झकझोर नहीं पाते उसे सोचने को मजबूर नहीं कर पाते, लेकिन तेजस्वी यादव ने अपने पहले ही भाषण में एक सफल वक्ता के ये गुण हासिल कर लिये हैं।