नरेंद्र मोदी के पिछले तीन साल मनमोहन सिंह के आखिरी तीन सालों के मुकाबले कहां ठहरते हैं?

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पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह सरकार के खराब आर्थिक प्रदर्शन पर काफी तीखे हमले किए थे. इन हमलों का ज्यादातर जोर यूपीए के आखिरी तीन साल (2011 से 2014) में अर्थव्यवस्था के खराब प्रदर्शन पर था. 2011 में अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद यूपीए सरकार का प्रदर्शन धुंधला सा दिखने लगा था. नरेंद्र मोदी ने इस अवधि को नीतिगत जड़ता (पॉलिसी पैरालाइसिस) का काल कहा था. उन्होंने इसके लिए खराब आर्थिक विकास और औ़द्योगिक विकास के आंकड़ों को सबूत के तौर पर पेश किया था. लेकिन इन दोनों मोर्चो पर मोदी सरकार के पिछले तीन सालों का प्रदर्शन मनमोहन सिंह के आखिरी तीन सालों के प्रदर्शन से बेहतर नहीं दिखता. कम से कम आंकड़े तो ऐसा ही कहते हैं.

अर्थव्यवस्था की विकास दर

नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मनमोहन सिंह ने घोटाले उजागर होने के बाद 2011 से फैसले लेना बंद कर दिया. इसके चलते देश की अर्थव्यवस्था मुसीबत के भंवर में फंस गई. उन्होंने आर्थिक विकास दर के आंकड़ों को उठाते हुए आरोप लगाया था कि सरकार के लचर फैसलों के चलते देश की विकास दर पांच फीसदी के नीचे आ गई है. पुराने आधार वर्ष (2004-05) के लिहाज से यूपीए सरकार के आखिरी तीन साल में देश की औसत विकास दर 5.4 फीसदी थी. शायद इसलिए भी मोदी ज्यादा तीखे हमले कर रहे थे. लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने आर्थिक विकास दर के आकलन का आधार वर्ष बदलकर 2011-12 करने का फैसला लिया. इससे भाजपा सरकार की विकास दर का आंकड़ा तो अचानक बढ़ा ही यूपीए सरकार के आंकड़ों में भी बदलाव हुआ. इस बदलाव के बाद मनमोहन सिंह के आखिरी तीन साल में अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़कर 6.3 फीसदी हो गई. अगर उऩके आखिरी साल की विकास दर इस पैमाने पर देखी जाए तो वह 6.9 फीसदी थी.

नए आधार वर्ष के आधार पर मनमोहन सरकार के विकास दर के आंकड़े

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दूसरी ओर देश में अच्छे दिन लाने का दावा करने वाली भाजपा सरकार के पिछले तीन सालों में देश की औसत विकास दर 7.36 फीसदी रही है. इसके लिए कई जानकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के कीमतों में आई कमी को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं. यानी मोदी सरकार के इन ‘अच्छे’ तीन सालों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था मनमोहन सिंह सरकार के ‘खराब’ समय से बहुत ज्यादा बेहतर नहीं रही. मोदी सरकार के निर्णयों की जहां तक बात है जानकार भी मानते हैं कि मौजूदा सरकार ने कई साहसिक और अच्छे फैसले लिए हैं. लेकिन अभी तक के आंकड़ों को ​देखकर ऐसा नहीं कहा जा सकता कि बीते तीन सालों में मोदी सरकार का प्रदर्शन यूपीए सरकार की तुलना में बहुत प्रभावशाली है.

औ़़द्योगिक विकास के मोर्चे पर दोनों सरकारों की तुलना

मोदी सरकार ने शुक्रवार को औद्योगिक विकास को मापने वाले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आधार वर्ष को भी बदलने की घोषणा कर दी. जीडीपी आकलन की तरह इसके लिए भी साल 2004-05 की जगह 2011-12 को आधार वर्ष बना दिया गया है.

नए आधार वर्ष के अनुसार जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक यूपीए सरकार के आखिरी तीन सालों की औसत औद्योगिक विकास दर 3.4 प्रतिशत रही. अगर अलग-अलग सालों के लिए इस आंकड़े को देखें तो 2011-12 से 2013-14 के बीच के तीन सालों में औद्योगिक विकास दर 3.5, 3.3 और 3.4 फीसदी रही. वहीं नरेंद्र मोदी के पिछले तीन सालों में औद्योगिक विकास का औसत 4.1 प्रतिशत रहा. नरेंद्र मोदी के बीते तीन सालों में औद्योगिक विकास दर 4.0, 3.4 और 5.0 फीसदी रही.

इसे दो तरह से देखा जा सकता है एक तो यह कि मोदी के तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद उनके कार्यकाल में उद्योगों की विकास दर यूपीए सरकार से केवल 0.7 फीसदी ज्यादा ही रही है. दूसरा अगर कोई सरकार आती है तो तुरंत ही चमत्कारी बदलाव नहीं आते है. इस लिहाज से वर्ष 2016-17 की विकास दर का पांच फीसदी होना इस सरकार के बारे में सकारात्मक राय बनाता है. लेकिन फिर यह भी कहा जा सकता है कि वर्ष 2014-15 में जो विकास दर चार फीसदी रही उसमें भी एक बड़ा योगदान पिछले साल, पिछली सरकार द्वारा किये गये कामों का हो सकता है.

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