बच्चों में पैसों का लालच नहीं, आत्मविश्वास भरें

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आज के समय में बच्चों में काफी कॉम्पिटीशन हो गया है। हर बच्चा इतना सक्षम और टैलेंटिड है कि अपने से एक स्तर आगे का ज्ञान रखता है। हालांकि हर बच्चा एक जैसा नहीं होता है। जो बच्चे पढ़ने के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी तेज होते हैं उनके परिजन उनसे बहुत खुश होते हैं। लेकिन जो बच्चा थोड़ा कमजोर होता है या इस प्रतिस्पर्धा भरे माहौल में खुद को ढाल नहीं पाता उसके लिए समस्या खड़ी हो जाती है। ऐसे बच्चे हर जगह खुद को पिछड़ा हुआ और घुटन भरा महसूस करते हैं। ऐसे बच्चों के माता-पिता भी उनका हौंसला कम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। जो बहुत गलत है। ऐसे बच्चों को स्कूल और घर दोनों जगह तरह-तरह के ताने सुनने पड़ते हैं। जैसे- ‘तुमने अपनी जिंदगी में कुछ करा भी है या नहीं?’ , ‘कभी पढ़ भी लिया करो’, ‘पता नहीं कल को अपना घर कैसे चलाओगे’, ‘तुम अपनी जिंदगी में कभी कुछ नहीं कर सकते’ आदि।

हर पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर आगे बढ़ें। कई लोग आगे बढ़ने का मतलब सिर्फ पैसा कमाने से समझते हैं। बचपन हमारे जीवन की बहुत गंभीर और नाजुक सीढ़ी होती है। इस उम्र में जो बात बच्चों के दिमाग पर बैठ जाती है उसे फिर कोई नहीं बदल सकता। हर मां-बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा जिंदगी में आगे चलकर एक सफल इंसान बने। इसके लिए मां-बाप को बचपन में ही अपनी परवरिश पर कुछ विशेष तरह का ध्यान देना चाहिए। यानी कि माता-पिता के पास चाहे जितना मर्जी पैसा हो उन्हें बच्चों के अंदर शुरू से ही मेहनत और लगन से जीवन में आगे बढ़ना सिखाना चाहिए।

आज के समय में बच्चों में काफी कॉम्पिटीशन हो गया है। हर बच्चा इतना सक्षम और टैलेंटिड है कि अपने से एक स्तर आगे का ज्ञान रखता है। हालांकि हर बच्चा एक जैसा नहीं होता है। जो बच्चे पढ़ने के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी तेज होते हैं उनके परिजन उनसे बहुत खुश होते हैं। लेकिन जो बच्चा थोड़ा कमजोर होता है या इस प्रतिस्पर्धा भरे माहौल में खुद को ढाल नहीं पाता उसके लिए समस्या खड़ी हो जाती है। ऐसे बच्चे हर जगह खुद को पिछड़ा हुआ और घुटन भरा महसूस करते हैं। ऐसे बच्चों के माता-पिता भी उनका हौंसला कम करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। जो बहुत गलत है। ऐसे बच्चों को स्कूल और घर दोनों जगह तरह-तरह के ताने सुनने पड़ते हैं। जैसे- ‘तुमने अपनी जिंदगी में कुछ करा भी है या नहीं?’ , ‘कभी पढ़ भी लिया करो’, ‘पता नहीं कल को अपना घर कैसे चलाओगे’, ‘तुम अपनी जिंदगी में कभी कुछ नहीं कर सकते’ आदि।

अमेरिका के टेक्सास यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया कि उच्च श्रेणी के लोग मध्यम वर्ग के लोगों की तुलना में अपने बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मध्यम वर्ग की कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों को ज्यादा समय देने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती हैं। क्योंकि मध्यम वर्ग की महिलाएं अक्सर घर में रहती हैं। या कामकाजी भी होती हैं तो घर पर आकर बच्चों को समय देती हैं। जिसके चलते वे अपने बच्चों पर ज्यादा ध्यान दे पाती हैं और उन्हें जिंदगी से जुड़ी जरूरी बातें बताती हैं। इसके साथ ही मिडिल क्लास लोग या कम आमदनी वाले लोग ट्यूशन के बजाय अपने बच्चों को घर में ही पढ़ाते हैं। जिससे वे अपने बच्चों की कमजोरी को बारीकी से जान लेते हैं और फिर उसे सुधारने का काम करते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब मां-बाप अपने बच्चों के साथ वक्त बिताते हैं और उन्हें उनकी कमजोरी की ओर ध्यान दिलाते हैं तो बच्चों के अंदर आत्मविश्वास और गंभीरता आती है। वह जिंदगी को एक अलग नजर से देखता है। इसलिए ये जरूरी है कि मां-बाप अपने बच्चों के साथ वक्त बिताएं और उनके अंदर पैसों का लालच नहीं बल्कि आमविश्वास भरें।

Credit: onlymyhealth