अपने में लाएं ये बदलाव सफलता चूमेगी कदम..!

नई दिल्ली। जीवन के किसी क्षेत्र पर भी नजर दौड़ाइये आप पाएंगे कि उन्ही की पूछ परख है जो किसी काम के होते हैं। किसी काम का होना, एक ऐसा जुमला है जो कामयाबी का मूल मंत्र भी कहा जा सकता है। हमारे सभी संबंधों में हम परस्पर हितों की अहमियत समझते हैं। आप जैसे ही महत्वपूर्ण बनते हैं लोग आपकी तारीफ करने लगते हैं, आपसे मिलने जुलने में खुशी का अनुभव करते हैं।
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आप अपने घर में नल, गैस या बिजली आदि की समस्याओं से कई बार जुझते हैं, ऐसे मौके पर इन्हें सुधारने वाले की जबरदस्त आवश्यकता महसूस होती है और ऐसे मौकों पर उनके लिए आपके मन में सम्मान का भाव भी आ जाता है। वो आपके घर जल्दी आ जाए के लिए आप कई बार मान मनौव्वल तक करते हैं। ऐसे लोग आपको अमूमन व्यस्त ही मिलेंगे। हम किसी कार्य के बड़े छोटे होने पर विचार न करते हुए यदि सिर्फ आवश्यकता के पहलू को समझने की कोशिश करें तो हम पाएंगे कि हमारी जरूरत अन्य लोगों को हमारे लिए महत्वपूर्ण बनाती है। जो समाज के जितने अधिक काम का होगा उसे इस सिद्धांत के तहत उतना ही अधिक सम्मान मिलेगा। आप किसी एक व्यक्ति की आवश्यकता पूर्ती में सहयोगी बनते हैं तो आपका दायरा सीमित होता है। यदि आप एक बड़े वर्ग के लिए काम करते हैं तो ये दायरा भी बड़ जाता है। सिद्धांत बहुत सीधा है आवश्यकता आपका महत्व बनाती है।

सामाजिक रूप से हम अन्य लोगों से अच्छे व्यवहार, दयालुता और अपने प्रति सद्भाव की अपेक्षा करते हैं। ठीक इसी तरह की अपेक्षाएं समाज के अन्य लोग हमसे भी करते हैं। दूसरों के प्रति सहयोग की भावना और उदारता का होना, समाज के लिए आवश्यक होने के मूलभूत गुण होते हैं। आप यदि किसी हुनर के जानकार हैं, लेकिन आप व्यवहार में सद्भाव और मधुरता नहीं रखते हैं तो आप अपेक्षाकृत कम कामयाबी हासिल करेंगे।
कई लोगों को उनके काम से ज्यादा उनके सहयोगात्मक रवैये की वजह से पसंद किया जाता है। निजी जीवन में आप तमाम उदाहरणों का अध्ययन अपने इर्द गिर्द ही कर सकते हैं। आप पाएंगे कि छोटी-छोटी बातों में या सामान्य अवसरों पर सहयोगात्मक और दयालुतापूर्ण व्यवहार करने वालों को समाज में अधिक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। अच्छ व्यक्तित्व निर्माण का महत्वपूर्ण कदम है अपने जीवन को समाज की मूल अपेक्षाओं के अनुरूप ढालना। इस अपेक्षा को समझना बहुत कठिन कार्य नहीं है। आप एक सामाजिक प्राणी के नाते बस अपनी अपेक्षाओं पर गौर करिए। आप अन्य लोगों से किस तरह के व्यवहार की अपेक्षा करते हैं? ठीक ऐसी ही अपेक्षा आपसे भी की जाती है। आपको इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर अपने दैन्दिन जीवन के व्यवहार का अभ्यास करना चाहिए। आपको वे लोग कतई पसंद नहीं आते हैं जो किसी भी तरह से आपके लिए परेशानी का सबब बनते हैं। इस तरह के किसी भी व्यवहार को देखकर उसका प्रति उत्तर उसी प्रकार देना आपको भी उतना ही बुरा बना देता है, जितना आप इस व्यक्ति को समझ रहे होते हैं। एक सामान्य उदाहरण के तौर पर विभिन्न जगहों की कतारों में, सड़क पर चलते हुए या गाड़ी चलाते हुए अन्य लोगों को सुविधा देने का अभ्यास करके देखिए। आप पाएंगे कि लोग आपके इस व्यवहार से प्रसन्न होंगे। इस तरह का अभ्यास आप विभिन्न अवसरों पर आजमा कर देख सकते हैं।
हम हर कार्य को अपनी पहचान बनाने के मकसद से करते हैं, लेकिन इस सामान्य मनोविज्ञान को भूल जाते हैं कि कार्य के साथ-साथ हमारा व्यवहार और समाज की आवश्यकता बने रहना कितना जरूरी है। स्वार्थ साधने के लिए भी की संबंध बनते हैं। आप यदि शक्तिशाली हैं, तो लोग कई बार आपके गलत और अनुचित लगने वाले व्यवहार के बावजूद आपसे चिपके रहते हैं। ऐसे मौकों पर आप अन्य लोगों की आवश्यकता नहीं बल्कि मजबूरी बने रहते हैं। आवश्यकता को हम ढूंढते हैं और मजबूरी के जल्दी दूर होने का इंतजार करते रहते हैं। स्वार्थ परक संबंधों में जैसे ही आपके हाथ से शक्ति जाती है आपका सम्मान करने वाले लोगो भी उसके साथ चले जाते हैं। इस तरह के अनुभव ये बताने के लिए काफी है कि शक्तिशाली या महत्वपूर्ण बनना, किसी की आवश्यकता बनना नहीं होता। आप प्रभावी व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहते हैं, तो आपको समाज की आवश्यकता बनने का सतत अभ्यास करना होगा। आप किसी भी कार्यक्षेत्र में काम करते हों यदि आप अपने हुनर के इस्तेमाल के साथ साथ मधुर व्यवहार, ईमानदारी और सहयोगात्मक रवैया रखते हैं तो आप लगातार लोगों को जीतते जाएंगे। इस बात को पुस्तक में पढ़ने या इसकी विवेचना करने के बजाय आप व्यवहारिक जीवन में आज ही आजमा कर देख सकते हैं।
मेरे एक मित्र एक बार अपने कॅरियर की कामयाबी का मंत्र बताते हुए मुझसे कह रहे थे, कि बॉस कोई भी हो लेकिन मेरा महत्व कभी भी कम नहीं होता। मैं उनके लिए एक आवश्यकता बन जाता हूं। मैं हर काम को बढ़ चढ़कर करता हूं, अपने काम दूसरों पर डालने के बजाय दूसरों के काम भी